कानून बनाना और प्रशासन चलाना बंद करे न्यायपालिका : डॉ. उदित राज



नई दिल्ली, 24 नवम्बर 2018, अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदित राज ने आज अपने निवास स्थान पर प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि “ उच्च न्यायपालिका अब विधायिका बन गयी है और अपने आप में ऐसी संस्था घोषित कर लिया है कि किसी की जवाबदेही नही रह गयी है और न्यायधीशों की नियुक्ति बिना योग्यता और दलित, आदिवासी और पिछड़ों के भागेदारी का दरवाज़ा भी बंद कर दिया है | बाहर से तो लगता है सबकुछ ठीक है लेकिन अन्दर से गोलमाल है | कुछ भ्रष्ट एवं अयोग्य नेताओं की आड़ में न्यायपालिका संविधान से ऊपर एक अधिकरण बन गयी है | इन मुद्दों को लेकर 3 दिसम्बर को रामलीला मैदान, नई दिल्ली में राष्ट्रीय रैली होगी, ताकि न्यायपालिका को संविधान की सीमा में रहकर कार्य करने के लिए बाध्य किया जाये |


तथाकथित पीआईएल(जनहित याचिका) के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट अपनी संस्था को तो कमजोर कर ही रहे हैं बल्कि अन्य क्षति जैसे जनता के लिए बने कानून को लागू कराने में असफल और मौलिक अधिकार को भी नही लागू करा पा रहे हैं और अन्य ज्वलंत समस्या जैसे संसाधन और पैरवी के अभाव में जेल में पड़े लाखों लोगों की समस्या आदि | इनका ध्यान सुप्रीम कोर्ट कानून बनाने की संस्था जैसे विधायिका और कार्यपालिका का स्थान लेने में लगी है | सैकड़ों ऐसे मामले हैं जहाँ कि पीआईएल की वजह से खुद न्यायपालिका उनके चक्रव्यूह में फँस चुकी है | कुछ अमीर वकील और निजी लोग जनहित याचिका के माध्यम से ऐसे फैसले करा रहे हैं जो पूरे समाज से संबधित है | इस तरह से जो फैसले हो रहे हैं वो कुछ ही लोगों की राय के आधार पर हैं न कि उस वर्ग और समाज की सहमति से जिनके हितों से जनहित याचिका सम्बंधित है | इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 124 और 217 में पुनः अपने तरह से परिभाषित कर दिया है, कोलोजियम सिस्टम अलोकतांत्रिक है, 2014 में संसद ने संविधान संशोधन करके नेशनल जुडिसियल अपॉइंटमेंट कमीशन बनाया था और 21 राज्यों की विधानसभा ने अनुमोदन भी किया लेकिन पीआईएल को माध्यम बनाकर के विधेयक को अवैध घोषित कर दिया |

डॉ. उदित राज ने आगे कहा कि “यह सरकार की ज़िम्मेदारी है प्रशासन चलाये न कि न्यायपालिका | सुप्रीम कोर्ट ने पहले लाखों दुकानों को सील करके तबाही मचाई और अब फिर से मोनिटरिंग कमिटी के माध्यम से सीलिंग अभियान चला रही है, इसमें संदेह नही कि सरकार और जनप्रतिनिधियों की कहीं न कहीं असफलता रही है लेकिन इसका यह मतलब नही है कि न्यायपालिका खुद कार्यपालिका बन जाए और मोनिटरिंग कमिटी उसका एक विभाग | हजारों लाखों घर या दुकान, उद्योग ऐसे भी सील किये जा रहे हैं जो कि मोनिटरिंग कमिटी के पैमाने में भी फिट नही होते लेकिन अधिकारियों की मनमानी की वजह से ऐसा हो रहा है | श्री मनोज तिवारी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट में हुई और अंत में उनकी गलती साबित नही हुई तो फिर ऐसा क्यों किया गया | जिन अधिकारियों ने गलत सीलिंग करी थी उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने क्या कार्यवाही करी | वास्तव में सीलिंग ही गलत थी |

डॉ. उदित राज ने कहा कि दलित, आदिवासी और पिछड़े बहुत ही उपेच्छित महसूस कर रहे हैं जैसे उच्च न्यायपालिका उनकी हो ही न और इन वर्गों के सम्बन्ध में जो भी मामले सामने आ रहे हैं उन पर ज्यादातर न्यायधीशों का रवैया भेदभाव का है | गुजरात हाई कोर्ट के एक जज ने कहा था कि आरक्षण एवं भ्रष्टाचार से देश बर्बाद हो रहा है, आरक्षण का लाभ लेने वालों की संख्या 85 प्रतिशत है तो क्या मना लिया जाए कि वो देश को बर्बाद कर रहे हैं | विधायिका और कार्यपालिका से जो भी अधिकार इन्हें मिलता है वह न्यायपालिका में कमजोर कर दिया जाता है | 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/जनजति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 को कमजोर कर दिया और उसको मूलरूप में लाने के लिए संसद में संविधान संशोधन किया तो इस पर विराम लग जाना चाहिए लेकिन फिर से सुप्रीम कोर्ट ने पीआईएल मंजूर कर लिया है | जिसपर जनवरी 2019 में सुनवाई होनी है | कोलोजियम सिस्टम को ख़त्म किया जाये और जजों की नियुक्ति नेशनल जुडिशल कमीशन के माध्यम से हो और संवैधानिक व्यवस्था को बहाल किया जाये, जिसके अनुसार जजों की नियुक्ति में सरकार की प्रमुखता होती थी | जजेस खुद मेरिट के आधार पर नियुक्त नही हो रहे हैं जब किसी हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस, किसी वकील का नाम जज के लिए सिफारिश करता है तो क्या उस वकील की कोई लिखित परीक्षा होती है या साक्षात्कार या उसके द्वारा लड़े गए मुकदमों की गुणवत्ता की जांच| कितनी हस्यात्पद बात है जो खुद मेरिट से नही आ रहे हैं वो दूसरों की मेरिट तय कर रहे हैं, आज हालत ये है कि 200 ही ऐसे परिवार है जिनमे से जजों की नियुक्ति हो रही है या चेला-गुरु के गठजोड़ में या चेला-गुरु को एहसान उतारने का |